1,103 total views
अंतिम संस्कार के लिए परिजन कर रहे एक एक दिन का इंतेज़ार,अंतिम संस्कार के लिए गंगा तट पर बनाया शमशान घाट
रिपोर्टर: प्रियांशु सक्सेना 24 पब्लिक न्यूज़
ऋषिकेश। कोविड महामारी के चलते होने वाली मौतों से तीर्थनगरी स्थित मुक्तिधाम में भी अंतिम संस्कार के लिए एक-एक दिन की वेटिंग का करना पड़ रहा है इंतेज़ार। स्थिति यह है कि सीमित स्थान होने के कारण मुक्तिधाम के भीतर खुले में अंतिम संस्कार करना पड़ रहा है। नगर निगम ऋषिकेश में अंतिम संस्कार के लिए गंगा तट पर शमशान घाट बना है, जिसको मुक्तिधाम सेवा समिति संचालन करती है। वर्तमान में कोरोना संक्रमण के चलते अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) व राजकीय संयुक्त चिकित्सालय में कोरोना से मरने वालो की संख्या में वृद्धि हुई है। इसके अलावा सामान्य मृत्यु के पश्चात अंतिम संस्कार भी मुक्तिधाम में ही होता है। तय समय के अनुसार रोज सुबह नौ से दोपहर दो बजे तक सामान्य व्यक्तियों के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार होता है। जबकि, कोरोना संक्रमण से मरे व्यक्तियों के शव का अंतिम संस्कार शाम चार बजे से रात नौ बजे तक किया जाता है। वर्तमान में देखे तो सामान्य मौत वाले आठ और कोरोना संक्रमण से मरने वाले दस व्यक्तियों के पार्थिव शरीर यहां लाए जा रहे हैं। जिससे मुक्तिधाम पर दबाव बहुत बढ़ गया है। स्थिति ऐसी भी आ रही है कि अंतिम संस्कार के लिए एक दिन का इंतजार करना पड़ता है। मुक्ति धाम सेवा समिति के पूर्व अध्यक्ष अनिल किंगर बताते हैं कि मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार के लिए बनाए गए शेड में जगह कम पड़ने पर परिसर के भीतर ही खुले में अंतिम संस्कार करना मजबूरी हो गया है। मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां भी कम पड़ने लगी है। मुक्ति धाम सेवा समिति के अध्यक्ष पंकज गुप्ता ने बताया कि इस समस्या को लेकर जब जिलाधिकारी देहरादून से बात की गई तो उन्होंने वन विकास निगम से तीन ट्रक लकड़ी की व्यवस्था कराई। लकड़ी की लागत 800 रुपये प्रति क्विंटल आ रही है। बताया कि हरिद्वार में गोबर से लकड़ी बनाने का प्लांट लगाया गया है। मुक्तिधाम समिति ने इस तरह की 11 क्विंटल लकड़ी मंगाई है। अब एक चिता में ढाई क्विंटल लकड़ी और डेढ़ क्विंटल गोबर काष्ठ का प्रयोग हो रहा है। इसकी लागत करीब 650 रुपया प्रति क्विंटल आ रही है।