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आईआईटी रुड़की में एक दिनी ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन,परकाया प्रवेश जैसा है अनुवादक का कार्य
ब्यूरो रिपोर्ट: 24 पब्लिक न्यूज़
रुड़की। अनुवादक को एक भाषा में उपलब्ध ज्ञान को दूसरी भाषा में ले जाना होता है। वह भी एक निश्चित और लक्षित पाठक वर्ग के अनुसार। इस लिहाज से देखें तो अनुवादक का कार्य परकाया प्रवेश जैसा है। ये विचार गत शनिवार को यहाँ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की के हिंदी प्रकोष्ठ के तत्वावधान में आयोजित ‘तकनीकी अनुवाद: कुछ नए परिप्रेक्ष्य’ विषयक ऑनलाइन कार्यशाला में भारतीय अनुवाद परिषद के महासचिव एवं वाक्सेतु के निदेशक आचार्य पूरन चंद टंडन ने व्यक्त किए। आचार्य टंडन ने कार्यशाला के पहले सत्र को संबोधित किया। पहला सत्र ‘विधाओं एवं संस्कृतियों का सेतु अनुवाद’ विषय को समर्पित था। उन्होंने कहा कि अनुवाद में मौलिकता एक आवश्यक तत्व है।
पूरे दिन चले इस आयोजन की अध्यक्षता संस्थान के उप निदेशक आचार्य मनोरंजन परिदा ने की। इसमें कुल चार सत्र थे, जिसमें अलग-अलग विषयों के विद्वानों ने अपने विचार रखे। आयोजन के आरंभ में वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए हिंदी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष आचार्य मनोज त्रिपाठी ने कहा कि अनुवाद के बिना आज की दुनिया की कल्पना भी नहीं की जा सकती। साहित्य और संस्कृति से लेकर कूटनीति और तकनीक तक जीवन के हर क्षेत्र में आज अनुवाद की आवश्यकता पड़ती है। इसकी बढ़ती हुई आवश्यकताओं को देखते हुए ही अब इसमें तकनीकी हस्तक्षेप भी बढ़ने लगा है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्थान के उप निदेशक आचार्य मनोरंजन परिदा ने कहा, “दुनिया भर के विज्ञान और तकनीकी से आज हम सुपरिचित हैं, यह अनुवाद के कारण ही संभव हुआ है। और आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक का आधार गणित की पहुँच आज भारत से दुनिया भर में हो चुकी है, यह भी अनुवाद की भूमिका के बिना संभव नहीं था। दूसरा सत्र ‘तकनीकी अनुवाद: समस्याएँ एवं समाधान’ विषय पर केंद्रित था। इस विषय पर व्याख्यान करते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के अनुवाद अध्ययन विभाग के निदेशक आचार्य राजेंद्र प्रसाद पाण्डेय ने कहा कि अनुवाद एक मूलभूत और मौलिक कार्य है। जिसका निश्चित रूप से संयोजन किया जाना चाहिए। उन्होंने व्याकरण संबंधी विशिष्टताओं का जिक्र करते हुए कहा कि तकनीकी विषयों के अनुवाद की अपनी अलग और विशिष्ट शब्दावली होती है। उस शब्दावली के प्रयोग की अपनी विशिष्ट परिस्थितियाँ एवं शर्तें होती हैं। विषय का ज्ञान भी अनुवाद के लिए बहुत जरूरी है। तीसरे सत्र में ‘तकनीकी शब्दावली के अनुप्रयोग’ विषय पर व्याख्यान देते हुए वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग के पूर्व अध्यक्ष आचार्य अवनीश कुमार ने तकनीकी शब्दावली के निर्माण की प्रक्रिया के बारे में बताया। उन्होंने शब्दों और उनके पर्यायों के अद्यतनीकरण की प्रक्रिया के बारे में भी बताया और कई उदाहरण प्रस्तुत करते हुए अनुवाद के दौरान सटीक और स्पष्ट अर्थ देने वाले शब्दों के चयन की प्रक्रिया को भी बताया। कार्यशाला का अंतिम सत्र मशीनी अनुवाद को समर्पित था। इस सत्र में भारत सरकार के गृह मंत्रालय में राजभाषा विभाग के उप निदेशक (तकनीकी) श्री राजेश श्रीवास्तव ने अनुवाद के विभिन्न टूल्स एवं सॉफ्टवेयरों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने टूल्स और सॉफ्टवेयर का फर्क भी बताया। साथ ही, भारत सरकार की ओर विकसित किए गए दो सॉफ्टवेयरों – मंत्रा और कंठस्थ के बारे में विस्तारपूर्वक बताया। खासकर कंठस्थ पर काम करने की पूरी प्रक्रिया उन्होंने समझाई। प्रत्येक व्याख्यान के अंत में प्रतिभागियों ने कुछ आवश्यक प्रश्न भी उठाए और वक्ताओं ने उनकी शंकाओं का यथासंभव समाधान भी किया। कार्यक्रम के अंत में आचार्य मनोज त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यशाला का संचालन इष्ट देव सांकृत्यायन ने किया। इस आयोजन में हिंदी प्रकोष्ठ के साथियों श्री महावीर सिंह, सुश्री सपना गुप्ता, श्री अंशुमन चतुर्वेदी, श्री शरद पवार एवं श्री गौरव तथा कंप्यूटर सेंटर के साथी श्री जावेद का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।